अर्जुनविषादयोगः (श्रीमदभगवदगीता - अध्याय 1 )

श्रीश्रीश्री त्रिदंडि चिन्नश्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामीजी की दिव्य वाणी से

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श्लोक        1 - 10        11 - 20       21 - 30       31 - 40       41 - 47      
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धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे
समवेता युयुत्सवः |
मामकाः पांडवा श्चैव
किमकुर्वत संजय! ||
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संजय उवाच
दृष्ट्वा तु पांडवानीकं
व्यूढं दुर्योधन स्तदा |
आचार्य मुपसंगम्य
राजा वचन मब्रवीत् ||
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*“पश्यैतां पांडुपुत्राणां
आचार्य! महतीं चमूं |
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण
तव शिष्येण धीमता ||
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अत्र शूरा महेष्वासाः
भीमार्जुन समा युधि |
युयुधानो विराटश्च
द्रुपदश्च महारथः ||
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धृष्टकेतु श्चेकितानः
काशीराज श्च वीर्यवान् |
पुरुजित् कुंतिभोजश्च
शैब्यश्च नरपुंगवः ||
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युधामन्यु श्च विक्रांतः
उत्तमौजा श्च वीर्यवान् |
सौभद्रो द्रौपदेया श्च
सर्व एव महारथाः ||
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अस्माकं तु विशिष्टा ये
तान्निबोध द्विजोत्तम! |
नायका मम सैन्यस्य
संज्ञार्थं तान् ब्रवीमि ते ||
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भवान् भीष्मश्च कर्णश्च
कृपश्च समितिंजयः |
अश्वत्थामा विकर्णश्च
सौमदत्ति स्तथैव च ||
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अन्ये च बहव श्शूराः
मदर्थे त्यक्त जीविताः |
नानाशस्त्र प्रहरणाः
सर्वे युद्ध विशारदाः ||
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अपर्याप्तं तदस्माकं
बलं भीष्माभिरक्षितं |
पर्याप्तं त्विदमेतेषां
बलं भीमाभिरक्षितम् ||
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