भक्तियोगः (श्रीमदभगवदगीता - अध्याय 12 )

श्रीश्रीश्री त्रिदंडि चिन्नश्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामीजी की दिव्य वाणी से

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श्लोक        1 - 10        11 - 20      
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अर्जुन उवाच
एवं सततयुक्ता ये
भक्ता स्त्वां पर्युपासते |
ये चाप्यक्षर मव्यक्तं
तेषां के योगवित्तमाः ||
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श्री भगवानुवाच
मय्यावेश्य मनो ये मां
नित्ययुक्ता उपासते |
श्रद्धया परयो पेताः
तेमे युक्ततमा मताः ||
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ये त्वक्षर मनिर्देश्यं
अव्यक्तं पर्युपासते |
सर्वत्रग मचिंत्यं च
कूटस्थ मचलं ध्रुवम् ||
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सन्निय म्येंद्रिय ग्रामं
सर्वत्र समबुद्धयः |
ते प्राप्नुवंति मामेव
सर्वभूतहिते रताः ||
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क्लेशोऽधिकतर स्तेषां
अव्यक्तासक्त चेतसां |
अव्यक्ता हि गति र्दुःखं
देहवद्भि रवाप्यते ||
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ये तु सर्वाणि कर्माणि
मयि सन्न्यस्य मत्पराः |
अनन्येनैव योगेन
मां ध्यायंत उपासते ||
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तेषा महं समुद्धर्ता
मृत्यु संसार सागरात् |
भवामि न चिरात् पार्थ!
मय्या वेशित चेतसाम् ||
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मय्येव मन आधत्स्व
मयि बुद्धिं निवेशय |
निवसिष्यसि मय्येव
अत ऊर्ध्वं न संशयः ||
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अथ चित्तं समाधातुं
न शक्नोषि मयि स्थिरम् |
अभ्यासयोगेन ततो
मा मिच्छाप्तुं धनंजय! ||
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अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि
मत्कर्म परमो भव |
मदर्थमपि कर्माणि
कुर्वन् सिद्धि मवाप्स्यसि ||
श्लोक        1 - 10        11 - 20