गुणत्रयविभागयोगः (श्रीमदभगवदगीता - अध्याय 14 )

श्रीश्रीश्री त्रिदंडि चिन्नश्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामीजी की दिव्य वाणी से

श्रीमदभगवदगीता का मूल Download pdf for parayana

श्लोक        1 - 10        11 - 20       21 - 27      
1    Click to Play the sloka       
श्री भगवानुवाच
परं भूयः प्रवक्ष्यामि
ज्ञानानां ज्ञान मुत्तमम् |
यद् ज्ञात्वा मुनय स्सर्वे
परां सिद्धि मितो गताः ||
2    Click to Play the sloka       
इदं ज्ञान मुपाश्रित्य
मम साधर्म्य मागताः |
सर्गेऽपि नोपजायंते
प्रलये न व्यथंति च ||
3    Click to Play the sloka       
मम योनि र्मह द्ब्रह्म
तस्मिन् गर्भं दधा म्यहम् |
संभव स्सर्वभूतानां
ततो भवति भारत! ||
4    Click to Play the sloka       
सर्व योनिषु कौंतेय!
मूर्तय स्संभवंति याः |
तासां ब्रह्म महद्योनिः
अहं बीजप्रदः पिता ||
5    Click to Play the sloka       
सत्त्वं रज स्तम इति
गुणाः प्रकृति संभवाः |
निबध्नंति महाबाहो!
देहे देहिन मव्ययम् ||
6    Click to Play the sloka       
तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्
प्रकाशक मनामयं |
सुख संगेन बध्नाति
ज्ञान संगेन चानघ! ||
7    Click to Play the sloka       
रजो रागात्मकं विद्धि
तृष्णा संग समुद्भवम् |
तन्निबध्नाति कौंतेय!
कर्मसंगेन देहिनम् ||
8    Click to Play the sloka       
तम स्त्वज्ञानजं विद्धि
मोहनं सर्वदेहिनां |
प्रमादालस्य निद्राभिः
तन्निबध्नाति भारत! ||
9    Click to Play the sloka       
सत्त्वं सुखे संजयति
रजः कर्मणि भारत! |
ज्ञान मावृत्य तु तमः
प्रमादे संजय त्युत ||
10    Click to Play the sloka       
रज स्तम श्चाभिभूय
सत्त्वं भवति भारत! |
रज स्सत्त्वं तम श्चैव
तम स्सत्त्वं रज स्तथा ||
श्लोक        1 - 10        11 - 20       21 - 27