कर्मसन्न्यासयोगः (श्रीमदभगवदगीता - अध्याय 5 )

श्रीश्रीश्री त्रिदंडि चिन्नश्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामीजी की दिव्य वाणी से

श्रीमदभगवदगीता का मूल Download pdf for parayana

श्लोक        1 - 10        11 - 20       21 - 29      
1    Click to Play the sloka       
अर्जुन उवाच
सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण!
पुनर्योगं च शंससि |
यच्छ्रेय एतयो रेकं
तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ||
2    Click to Play the sloka       
श्री भगवानुवाच
सन्न्यासः कर्मयोगश्च
निश्श्रेयसकरा वुभौ |
तयोस्तु कर्मसन्न्यासात्
कर्मयोगो विशिष्यते ||
3    Click to Play the sloka       
ज्ञेयस्स नित्यसन्न्यासी
यो न द्वेष्टि न कांक्षति |
निर्द्वंद्वो हि महाबाहो!
सुखं बंधात् प्रमुच्यते ||
4    Click to Play the sloka       
सांख्ययोगौ पृथक् बालाः
प्रवदंति न पंडिताः |
एक मप्यास्थित स्सम्यक्
उभयो र्विंदते फलम् ||
5    Click to Play the sloka       
यत् सांख्यैः प्राप्यते स्थानं
तद्योगैरपि गम्यते |
एकं सांख्यं च योगं च
यः पश्यति स पश्यति ||
6    Click to Play the sloka       
सन्न्यास स्तु महाबाहो
दुःख माप्तु मयोगतः |
योगयुक्तो मुनि र्ब्रह्म
न चिरेणाधिगच्छति ||
7    Click to Play the sloka       
योगयुक्तो विशुद्धात्मा
विजितात्मा जितेंद्रियः |
सर्वभूतात्म भूतात्मा
कुर्वन्नपि न लिप्यते ||
8    Click to Play the sloka       
नैव किंचित् करोमीति
युक्तो मन्येत तत्त्ववित् |
पश्यन् शृण्वन् स्पृशन् जिघ्रन्
अश्नन् गच्छन् स्वपन् श्वसन् ||
9    Click to Play the sloka       
प्रलपन् विसृजन् गृह्णन्
उन्मिषन् निमिषन्नपि |
इंद्रिया णींद्रियार्थेषु
वर्तंत इति धारयन् ||
10    Click to Play the sloka       
ब्रह्म ण्याधाय कर्माणि
सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः |
लिप्यते न स पापेन
पद्मपत्र मिवांभसा ||
श्लोक        1 - 10        11 - 20       21 - 29