अक्षरपरब्रह्मयोगः (श्रीमदभगवदगीता - अध्याय 8 )

श्रीश्रीश्री त्रिदंडि चिन्नश्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामीजी की दिव्य वाणी से

श्रीमदभगवदगीता का मूल Download pdf for parayana

श्लोक        1 - 10        11 - 20       21 - 28      
1    Click to Play the sloka       
अर्जुन उवाच
किं तत् ब्रह्म? किमध्यात्मं?
किं कर्म? पुरुषोत्तम! |
अधिभूतं च किं प्रोक्तं?
अधिदैवं किमुच्यते? ||
2    Click to Play the sloka       
अधियज्ञः कथं कोऽत्र
देहेऽस्मिन् मधुसूदन! |
प्रयाणकाले च कथं
ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ||
3    Click to Play the sloka       
श्री भगवानुवाच
अक्षरं ब्रह्म परमं
स्वभावोऽध्यात्म मुच्यते |
भूतभावो द्भवकरो
विसर्गः कर्मसंज्ञितः ||
4    Click to Play the sloka       
अधिभूतं क्षरोभावः
पुरुष श्चाधि दैवतं |
अधियज्ञोऽहमे वाऽत्र
देहे देहभृतां वर! ||
5    Click to Play the sloka       
अंतकाले च मामेव
स्मरन् मुक्त्वा कळेबरम् |
यः प्रयाति स मद्भावं
याति नास्त्यत्र संशयः ||
6    Click to Play the sloka       
यं यं वाऽपि स्मरन् भावं
त्यज त्यंते कळेबरम् |
तं तमेवैति कौंतेय!
सदा तद्भावभावितः ||
7    Click to Play the sloka       
तस्मात् सर्वेषु कालेषु
मा मनुस्मर युद्ध्य च |
मय्यर्पित मनो बुद्धिः
मामे वैष्य स्यसंशयः ||
8    Click to Play the sloka       
अभ्यासयोगयुक्तेन
चेतसा नान्यगामिना |
परमं पुरुषं दिव्यं
याति पार्थानुचिन्तयन् ||
9    Click to Play the sloka       
कविं पुराणं अनुशासितारं
अणोरणीयांस मनुस्मरे द्यः |
सर्वस्य धातार मचिन्त्यरूपं
आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् ||
10    Click to Play the sloka       
प्रयाणकाले मनसाऽचलेन
भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव |
भ्रुवो र्मध्ये प्राण मावेश्य सम्यक्
स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ||
श्लोक        1 - 10        11 - 20       21 - 28